मेरठ, चारों तरफ से पेड़-पौधों से घिरे शताब्दीनगर को एक घने जंगल यानी सिटी फॉरेस्ट की सौगात मिलने वाली है। इस जंगल में जो पौधे रोपे जाएंगे, उन्हें बड़े पेड़ बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, क्योंकि इन्हें मियावाकी पद्धति से रोपा जाएगा। एमडीए ने सेक्टर चार-बी में अपनी आठ हजार वर्ग मीटर जमीन पर जंगल विकसित करने का निर्णय किया है। इसी क्रम में मंगलवार को मियावाकी पद्धति के विशेषज्ञ, एमडीए के चीफ इंजीनियर दुर्गेश श्रीवास्तव व तहसीलदार विपिन कुमार आदि ने स्थल निरीक्षण भी किया और मिट्टी का नमूना लिया गया। इसके पौधे चार साल में ही इतने बड़े हो जाएंगे, जो जंगल जैसे लगने लगेंगे। जिस कंपनी को टेंडर दिया जाएगा, उसे ही चार साल तक रखरखाव करना है। इस पर करीब 45 लाख रुपये खर्च होंगे। लोगों को घूमने के लिए इसमें ट्रैक भी बनेंगे। मियावाकी पद्धति से पौधों की वृद्धि 10 गुना तेजी से होती है। यही नहीं, सामान्य पौधारोपण से 30 गुना ज्यादा सघन होते हैं। इस पद्धति से पौधे लगाने को क्षेत्र विशेष के पेड़ों की पहचान की जाती है। फिर झाड़ी, कैनोपी, छोटे और बड़े पेड़ में विभाजित किया जाता है। इसमें करीब 80 प्रजाति के पौधे लगेंगे। इसमें ऑर्गेनिक खाद का प्रयोग किया जाएगा। यही नहीं, एक मीटर की परत में बायोमास यानी पुआल, गोबर खाद आदि मिश्रित किए जाएंगे। जापानी वनस्पति वैज्ञानिक और पर्यावरण विशेषज्ञ डी. अकीरा मियावाकी ने पौधरोपण की इस अनोखी विधि को खोजा था। इस तकनीक में पौधों को एक दूसरे से दो से ढाई फुट की दूरी पर लगाया जाता है, जिससे पौधे पास पास उगते हैं और सूर्य की किरणों सीधे धरती तक नहीं पहुंच पातीं। इससे पौधों के आसपास घास नहीं उगती और मिट्टी में नमी बनी रहती है। मियावाकी पद्धति से कम जगह में ज्यादा पौधे लगते हैं और कम समय में पेड़ बड़े हो जाते हैं। कई जगह देखी गई है, लेकिन शताब्दीनगर उपयुक्त है। फिलहाल मिट्टी की जांच कराई जा रही है। यह शहर के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।