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राजद्रोह कानून को खत्म क्यों नहीं करते

  • 16-Jul-2021

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आइपीसी धारा 124ए (राजद्रोह) के दुरुपयोग और इस पर कार्यपालिका की जवाबदेही न होने पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि इस कानून को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह कानून अंग्रेजों के समय का है। वे स्वतंत्रता आंदोलन दबाने के लिए इसका प्रयोग करते थे। उन्होंने महात्मा गांधी को चुप कराने के लिए इसका प्रयोग किया। आजादी के इतने साल बाद भी इसकी जरूरत है। सरकार ने बहुत से पुराने कानून रद किये हैं लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया। इसका बहुत दुरुपयोग होता है। ये कानून लोगों और संस्थाओं के लिए बड़ा खतरा है। कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर विचार करने का मन बनाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। हालांकि जवाब के लिए कोई अंतिम तिथि नहीं दी है। कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए ये तीखी टिप्पणियां चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने राजद्रोह कानून पर सवाल उठाने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं। कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और इसी मुद्दे पर पहले से लंबित याचिकाओं को भी इसी के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का आदेश दिया। टिप्पणी का स्वागत : राहुल गांधी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी की सराहना करते हुए केंद्र से सवाल किया कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी औपनिवेशिक युग के कानून की जरूरत है। कहा , “ हम उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी का स्वागत करते हैं।” तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने अपने ट्विटर हैंडल पर कहा, “ अंतत: उम्मीद बंधी है कि केंद्र सरकार द्वारा दुरुपयोग के तहत कायम रखे गये इस पुराने कानून को खत्म कर दिया जाएगा।” इस बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर कर भारतीय दड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। उच्चतम न्यायालय ने संबंधित याचिका पर आज सुनवाई के दौरान राजद्रोह के प्रावधानों के इस्तेमाल को निरंतर जारी रखने पर सवाल खड़े किये और कहा कि आजादी के 74 साल बाद भी इस तरह के प्रावधान को बनाये रखना ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है। मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने एटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124(ए) को कायम रखने के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये। न्यायमूर्ति रमन ने श्री वेणुगोपाल से पूछा कि आजादी के 74 साल बीत जाने के बाद भी उपनिवेशकाल के इस कानून की जरूरत है क्या, जिसका इस्तेमाल आजादी की लड़ाई को दबाने के लिए महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया गया था।