महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने सरकार से मांगी ट्रॉयल की अनुमति
मुंबई। वैश्विक महामारी कोविड-19 से दुनिया परेशान है। तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक दवा नहीं बन पाई है। लेकिन, महाराष्ट्र में सांगली जिले के सिराला स्थित आईसेरा बॉयोलॉजिकल प्रा. लि. कंपनी ने सौ साल पुरानी पद्धति पर आधारित कोरोना पर प्रभावी दवा तैयार करने का दावा किया है। कंपनी ने पशुओं पर इसके सफल प्रयोग के बाद मानवीय परीक्षण के लिए आईसीएमआर से अनुमति मांगी है।
आईसेरा बॉयोलॉजिकल कंपनी का दावा है कि इंजेक्शन के रूप में विकसित की गई कोविड-19 की यह दवा भयावह कोरोना रोग के मरीजों के लिए संजीवनी साबित होगी। आईसेरा कंपनी पुणे की मशहूर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर काम कर रही है।
सीरम इंस्टीट्यूट कोविशील्ड वैक्सीन का उत्पादन करती है। वहीं, आईसेरा बॉयोलॉजिकल कंपनी एंटी रैबीज, एंटी स्नैक और एंटीस्कार्पिन बनाती है। अब कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर कोविड के इलाज के लिए प्रभावी दवा बनाने में जुटी है। आईसेरा बॉयोलॉजिकल के निदेशक प्रताप देशमुख की ओर से कंपनी की वेबसाइट पर लिखा गया है कि हमने पिछले कुछ महीनों से कोविड-19 दवा के क्लीनिकल ट्रॉयल को विभिन्न चरणों में सफलतापूर्वक पूरा किया है। अगले कुछ दिनों में हम सबसे सुरक्षित और प्रभावी दवा विकसित करने के रास्ते पर हैं, जो मानवजाति की सेवा के लिए उपलब्ध होगा। यह दवा न केवल अस्पताल में भर्ती होने और डर को कम करने में मदद करेगा बल्कि कोविड-19 के संक्रमण से प्रभावित हुई हमारी अर्थव्यवस्था को भी सामान्य करने में सहयोग करेगा।
घोड़ों के खून में बनी एंटीबॉडीज से बनेगी कोरोना की दवा
आईसेरा कंपनी के पास 350 घोड़े (टट्टू) हैं। इनमें कोविड का वायरस दिया जाता है। एक महीने के बाद उसमें एंटीबॉडीज तैयार होती हैं। उसके बाद उस घोड़े का खून निकालकर उसमें से एंटीबॉडीज को अलग किया जाता है और बाकी रक्त को घोड़े में फिर से चढ़ा दिया जाता है। चव्हाण ने कहा कि यह तकनीक सौ साल पुरानी है। आईसेरा कंपनी ने इसका पशुओं पर सफल परीक्षण किया है। मानवीय परीक्षण की सफलता देश के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।