मेरठ, ग्रीन इंडिया।
चौ.चरण सिंह विवि के इतिहास विभाग में 27 फरवरी से 07 मार्च तक चल रही दस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के सातवें दिन बुधवार को कार्यक्रम की शुरूआत विवि के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.केके शर्मा ने की। उन्होंने भारतीय इतिहास लेखन के विषय में विस्तृत व्याख्यान देते हुए कहा कि इतिहास लेखन के दो मॉडल हो सकते हैं। पहला विदेशी और दूसरा भारतीय। भारत धर्म प्रधान देश है, इस स्थिति में भारतीय इतिहास का लेखन विदेशी मॉडल के स्थान पर भारतीय मॉडल से होना चाहिए क्योंकि भारत में परंपरा और विश्वास प्रधान है जबकि विदेशों में तर्क का सहारा लिया जाता है।
आजकल इतिहास में क्षेत्रीय राष्ट्रवादी इतिहास लेखन अधिक उभरा है। जैसे मराठा राष्ट्रवादी इतिहास लेखन, पंजाब राष्ट्रवादी इतिहास लेखन, महाराष्ट्र राष्ट्रवादी इतिहास लेखन इत्यादि। यह सब क्षेत्रीय राष्ट्रवाद भारतीय राष्ट्रवाद के लिए एक प्रश्न हैं। क्षेत्रीय इतिहास लेखन इस प्रकार से किया जाना चाहिए जिस प्रकार वह राष्ट्रवाद का पूरक हो न कि भारतीय राष्ट्रवाद से अलग एक विचारधारा। शोधार्थियों को शोध कार्य करते समय इस महत्वपूर्ण बिन्दू को सावधानीपूर्वक स्मरण रखना चाहिए। उत्तर भारत विदेशी आक्रांताओं के प्रवेश का क्षेत्र रहा है। उत्तर भारत में इतिहास लेखन का कार्य दक्षिण भारत की अपेक्षा अधिक हुआ। दक्षिण भारत के लोगों ने इसे महसूस किया तो दक्षिण भारत के इतिहास लेखन के आवश्यक कार्य को आरम्भ किया। इस सन्दर्भ में दक्षिण भारत के इतिहासकारों में के. नीलकंठ शास्त्री, केएम पणिकर का नाम महत्वपूर्ण है। दक्षिण के स्थापत्य कला के इतिहास पर लिखा जाने लगा। इसमें कला एवं संस्कृति को मुख्य माना जाने लगा। सर सैय्यद अहमद खाँ ने अलीगढ़ आन्दोलन के द्वारा मुस्लिम समाज को अंग्रेजों के समीप लाने का प्रयास किया। विभागाध्यक्षा प्रो. एवी कौर ने गांधी जी के आन्दोलनों पर प्रकाश डालते हुए सत्याग्रह व अहिंसा के विस्तृत अर्थ बताये। उन्होंने असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन व भारत छोड़ो आन्दोलन के विभिन्न चरणों की व्याख्या की। डा. डीके पाल, अध्यक्ष, अन्तरराष्ट्रीय भारत तिब्बत सहयोग समिति ने कहा कि तिब्बत में प्राकृतिक संपदा बहुत अधिक है। आज चीन में साठ प्रतिशत लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी ने संसद में तिब्बत का मुद्दा उठाया था।
प्रो. दिनेश कुमार, विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र विभाग ने कहा कि जब से प्राणी समाज का अस्तित्व है तब से इतिहास का अस्तित्व है। मनुष्य की आवश्यकताएं असीमित होती हैं तथा साधन सीमित होते हैं। सीमित साधनों द्वारा असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।